काशी में रंगभरी एकादशी से शुरू हुई होली, संतों ने खेली फूलों की होली

धार्मिक नगरी काशी (वाराणसी) में रंगभरी एकादशी से होली के उत्सव की शुरुआत हो गई है। इस दिन काशी में भक्तों और संतों के उत्साह का अलग ही रंग देखने को मिलता है। काशी की होली बेहद खास होती है, जहां परंपरागत रूप से संत-महात्मा भी फाग गीत गाकर और रंग-गुलाल उड़ाकर इस पर्व का आनंद लेते हैं।
पातालपुरी मठ में संतों ने खेली फूलों की होली
वाराणसी के पातालपुरी मठ में संतों ने फूलों की होली खेलकर उत्सव की शुरुआत की। फूलों की पंखुड़ियों को हवा में उड़ाकर संतों ने भगवान शिव के चरणों में भक्ति भाव प्रकट किया। इस दौरान जगतगुरु बालक देवाचार्य भी मौजूद रहे।
काशी का फगुआ क्यों है खास?
काशी का फगुआ (होली उत्सव) अपने आप में खास होता है। यहां बसंत पंचमी से ही होली का रंग चढ़ने लगता है और महाशिवरात्रि तक इसका जोश और बढ़ जाता है। जैसे ही रंगभरी एकादशी आती है, भक्तगण बाबा विश्वनाथ के साथ होली खेलकर इस पर्व को अपने चरम पर पहुंचा देते हैं।
रंग, गुलाल और फूलों की होली
काशी में हर भक्त अपने अंदाज में होली मनाता है—
- कोई रंग और गुलाल उड़ाकर महादेव की भक्ति में लीन हो जाता है।
- कोई फूलों की होली खेलकर भगवान शिव को समर्पित करता है।
- मठों और मंदिरों में फाग गीतों की गूंज से माहौल भक्तिमय हो जाता है।
काशी की होली—धर्म, भक्ति और उत्सव का संगम
काशी की होली सिर्फ रंगों का त्यौहार नहीं, बल्कि धर्म, भक्ति और परंपराओं का अनोखा संगम है। बाबा विश्वनाथ की नगरी में होली सिर्फ एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि पूरे महीने चलने वाला आध्यात्मिक पर्व है।