उत्तराखंड में भी ‘लिविंग विद लेपर्ड’ थीम पर काम शुरू, मीडिया कार्यशाला में वैज्ञानिक समझ और समाधान पर ज़ोर

देहरादून: महाराष्ट्र की तर्ज पर अब उत्तराखंड में भी ‘लिविंग विद लेपर्ड’ थीम पर कार्य किया जा रहा है। इस दिशा में उत्तराखंड वन विभाग ने तितली ट्रस्ट और वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी इंडिया के सहयोग से देहरादून में एक प्रभावशाली मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यशाला का उद्देश्य केवल संवाद नहीं था, बल्कि मीडिया को मानव-वन्यजीव संघर्ष की पृष्ठभूमि में समझ विकसित करने और समाधान का सक्रिय साझेदार बनाने पर बल देना था।
कार्यशाला में बताया गया कि 2014 से तितली ट्रस्ट और वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी इंडिया द्वारा किए गए शोध से यह सामने आया है कि अधिकतर तेंदुआ हमले आकस्मिक मुठभेड़ों के कारण होते हैं, न कि तेंदुए द्वारा शिकार की नीयत से। यह अध्ययन वन विभाग के लिए नीति निर्धारण और स्थानीय समाधान तलाशने में मददगार सिद्ध हुआ है।
इस अवसर पर राज्य के प्रमुख वन्यजीव अधिकारी—मुख्य वन्यजीव वार्डन रंजन मिश्रा, डॉ. धनंजय मोहन, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक डॉ. साकेत बडोला और राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक डॉ. कोको रोज उपस्थित रहे। सभी अधिकारियों ने तेंदुए के व्यवहार, मानव गतिविधियों के प्रभाव और सह-अस्तित्व के मॉडल्स पर विस्तार से चर्चा की।
मुख्य वन्यजीव वार्डन रंजन मिश्रा ने कहा, “अगर मीडिया डर और सनसनी को बढ़ावा देता है, तो संघर्ष और गहराता है। लेकिन यदि मीडिया वैज्ञानिक तथ्यों और सहानुभूति के साथ रिपोर्टिंग करे, तो वह समाधान की राह दिखा सकता है।” वहीं डॉ. मोहन ने कहा, “तेंदुआ अक्सर गलत समझा जाता है। हर हमले को ‘आदमीखोर’ कहकर सनसनीखेज बनाना गलत है। हमें ‘सेंसेशनल’ से ‘सेंसिबल’ रिपोर्टिंग की ओर बढ़ना होगा।”
विशेष बुकलेट का विमोचन
कार्यशाला के दौरान एक विशेष पुस्तिका “तेंदुओं के बारे में मिथकों को तोड़ना और उनके साथ रहना सीखना” का विमोचन भी किया गया। यह बुकलेट आमजन को तेंदुओं के व्यवहार, मुठभेड़ की प्रकृति और सुरक्षित व्यवहार के व्यावहारिक सुझाव प्रदान करती है।
पत्रकार और ‘असर’ के संचार प्रमुख विराट सिंह ने इस मौके पर कहा, “डराने वाली हेडलाइन भले ही TRP ला दे, लेकिन वह गांवों में डर, अफवाह और हिंसा को जन्म देती है। अब विज्ञान और संवाद को जोड़ने की जरूरत है।” उन्होंने यह भी बताया कि 2013 में राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक में डॉ. विद्या अथरेया को शामिल करने का निर्णय लिया गया था। महाराष्ट्र में तेंदुआ संघर्ष को कम करने के उनके प्रयासों को देखते हुए, उनके मार्गदर्शन में 2014 से उत्तराखंड में तितली ट्रस्ट और वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी इंडिया ने उच्च-संघर्ष वाले क्षेत्रों में गहन अध्ययन शुरू किया, जिसमें तेंदुए की गतिविधियां, स्थानीय समुदाय की धारणा और मानव-वन्यजीव संबंधों पर विशेष ध्यान दिया गया।
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