करगिल अमर शहीदों को सेना ने घर-घर जाकर किया सम्मानित
'शौर्य सम्मान महोत्सव' से गूंजा देशभक्ति का स्वर

ऋषिकेश,: भारतीय सेना द्वारा आयोजित ‘घर-घर शौर्य सम्मान महोत्सव’ के अंतर्गत करगिल युद्ध के वीर शहीदों के परिजनों को उनके घर जाकर सम्मानित किया गया। यह कार्यक्रम न केवल शहीदों के प्रति सम्मान का प्रतीक है, बल्कि राष्ट्र के प्रति उनके अमूल्य बलिदान को जनमानस के हृदय में फिर से जीवित करने का एक प्रेरणादायक प्रयास भी है।
सेना की टीम ने घर-घर पहुंचाया सम्मान
इस विशेष अभियान के दौरान सेना के नायब सूबेदार सुधीर चंद्र और उनकी टीम ने अदम्य सैन्य अनुशासन का परिचय देते हुए स्मृति चिन्ह और सम्मान पत्र लेकर शहीदों के घर पहुंचे। जब हर द्वार पर सेना की वर्दी दिखाई दी, तो वातावरण में एक भावुक श्रद्धा की लहर दौड़ गई। परिजन जहां भाव-विह्वल थे, वहीं आस-पड़ोस के लोग भी गर्व और सम्मान से सराबोर दिखे।
शहीद पत्नी का भावुक संदेश
अमर शहीद नायक शिवचरण प्रसाद की धर्मपत्नी श्रीमती मंजू देवी जी ने सम्मान पत्र और स्मृति चिन्ह ग्रहण करते हुए कहा, “आज जैसे मेरे पति फिर से घर लौट आए हैं। जिस वर्दी को मैंने अंतिम बार देखा था, वह आज मेरे आंगन में खड़ी है। यह सम्मान हमारे जख्मों पर मरहम है।”यह शब्द न केवल उनकी पीड़ा को दर्शाते हैं, बल्कि यह भी बताते हैं कि सेना का यह कदम परिजनों के लिए कितनी बड़ी भावनात्मक संबल है।
समुदाय की व्यापक सहभागिता
इस अवसर पर स्थानीय नागरिकों, स्कूली छात्रों, पूर्व सैनिकों और जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति ने माहौल को और अधिक गरिमा प्रदान की। भारतीय सेना के नायब सूबेदार सुधीर चंद्र और उनके साथियों ने बच्चों को करगिल युद्ध की कहानियां सुनाईं, जिससे युवा पीढ़ी को प्रेरणा मिली।
राष्ट्र का संदेश – “हम अपने वीरों को नहीं भूलते”
सैन्य अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यह महोत्सव केवल एक सम्मान कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक संदेश है – “राष्ट्र अपने वीरों को कभी नहीं भूलता।” उन्होंने कहा कि इस अभियान का उद्देश्य है कि हर नागरिक शहीदों के परिवारों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करे और उन्हें यह महसूस कराए कि उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया।
समाज के लिए मिसाल
यह अभियान न केवल परिजनों के लिए गौरव का क्षण था, बल्कि पूरे समाज के लिए एक उदाहरण है कि वीरता का सम्मान केवल स्मारकों में नहीं, बल्कि दिलों में होना चाहिए।
‘घर-घर शौर्य सम्मान अभियान’ के माध्यम से भारतीय सेना ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह न केवल सीमाओं की रक्षक है, बल्कि उन परिवारों की भी संरक्षक है, जिन्होंने अपने पति, पुत्र और बेटे को मातृभूमि के चरणों में अर्पित कर दिया।