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उत्तराखंड विधानसभा का बजट सत्र कई मुद्दों पर चर्चा के लिए अहम रहा, लेकिन कृषि मंत्री गणेश जोशी की असहज स्थिति ने सरकार की तैयारी पर सवाल खड़े कर दिए। जब उनसे प्राकृतिक खेती के बारे में सवाल किया गया, तो वे न तो यह बता पाए कि प्राकृतिक खेती कैसे और कहां की जाती है, और न ही यह स्पष्ट कर सके कि जैविक और प्राकृतिक खेती में क्या अंतर है।
स्पीकर को करना पड़ा सवाल स्थगित
मंत्री के जवाब से असंतुष्ट विपक्ष ने सदन में जोरदार विरोध किया। स्थिति इतनी असहज हो गई कि स्पीकर को इस मुद्दे से जुड़े सवाल को स्थगित करना पड़ा। विपक्ष ने इसे सरकार की नाकामी करार देते हुए कहा कि जब खुद कृषि मंत्री को प्राकृतिक खेती की सही जानकारी नहीं है, तो किसानों को इससे कैसे जोड़ा जाएगा?
मंत्रियों की तैयारी पर उठे सवाल
सरकार का सदन में जवाब नहीं देना मंत्रियों की कमजोर तैयारी को उजागर करता है। सदन में सवालों के जवाब देने के लिए मंत्रियों को पूरी जानकारी और आंकड़ों के साथ आना चाहिए, लेकिन गणेश जोशी की स्थिति ने यह दिखाया कि सरकार के मंत्री अपने विभाग से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी पूरी तरह तैयार नहीं हैं।
विपक्ष का तंज: “किसानों को गुमराह कर रही सरकार”
विपक्षी दलों ने इस मौके को भुनाते हुए सरकार पर सीधा हमला बोला। नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार किसानों को प्राकृतिक खेती के नाम पर गुमराह कर रही है, जबकि खुद मंत्री को इसका बुनियादी ज्ञान तक नहीं है। उन्होंने मांग की कि सरकार को प्राकृतिक खेती को लेकर अपनी स्पष्ट नीति और योजनाओं को सामने लाना चाहिए।
क्या है जैविक और प्राकृतिक खेती का अंतर?
बता दें कि जैविक खेती और प्राकृतिक खेती में मूलभूत अंतर यह है कि जैविक खेती में कंपोस्ट, जैविक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है, जबकि प्राकृतिक खेती में पूरी तरह से रासायनिक और जैविक इनपुट्स को छोड़ दिया जाता है। इसमें गौ आधारित खेती, मल्चिंग और मल्टी-क्रॉपिंग तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है।
सरकार की किरकिरी, क्या सुधरेगी स्थिति?
यह मामला सरकार के लिए एक बड़ी किरकिरी का कारण बना है, क्योंकि केंद्र सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है। ऐसे में राज्य सरकार के कृषि मंत्री की इस विषय पर जानकारी न होना गंभीर सवाल खड़े करता है। अब देखना होगा कि सरकार अपनी तैयारियों को दुरुस्त करती है या विपक्ष इस मुद्दे को और तूल देता है