
देहरादून – उत्तराखंड में इस बार मानसून सिर्फ नई आपदाएं ही नहीं लाया, बल्कि पुराने घावों को भी हरा कर गया। अगस्त महीने में बादल फटने और अत्यधिक बारिश की घटनाओं ने पूरे पहाड़ी क्षेत्रों में तबाही मचाई है। इस दौरान राज्य में 63 नए लैंडस्लाइड जोन विकसित हो गए हैं, जो पहले कभी नहीं थे।
सबसे गंभीर बात यह है कि जिन पुराने लैंडस्लाइड क्षेत्रों का ट्रीटमेंट कर उन्हें निष्क्रिय घोषित कर दिया गया था, वे भी इस बार की बारिश में फिर से सक्रिय हो गए हैं। यानी बारिश ने पहाड़ों पर ऐसे जख्म फिर से उघाड़ दिए, जिन्हें इंसानी प्रयासों से भरने की कोशिश की गई थी।
63 नए लैंडस्लाइड ज़ोन, 20 पुराने ज़ोन फिर सक्रिय
राज्य में उत्तरकाशी, चमोली और रुद्रप्रयाग जिलों में सबसे ज्यादा प्रभाव देखा गया, जहां 20 पुराने लैंडस्लाइड ज़ोन फिर से सक्रिय हो गए। विशेषज्ञों का मानना है कि अगस्त में हुई 500 मिमी से अधिक बारिश ने पहाड़ी स्थिरता को गहरा नुकसान पहुंचाया है।
इस महीने में औसतन 300 मिमी बारिश की उम्मीद रहती है, लेकिन इस बार सामान्य से कहीं अधिक वर्षा दर्ज की गई, जिसने पहाड़ों की सेहत को बुरी तरह प्रभावित किया।
हिमवंत योजना के तहत हो रहा लैंडस्लाइड ट्रीटमेंट का प्रयास
लोक निर्माण विभाग के सचिव पंकज कुमार पांडे ने बताया कि राज्य सरकार ने ‘हिमवंत’ योजना के तहत स्टेट हाईवे और प्रमुख सड़कों पर लैंडस्लाइड ट्रीटमेंट का कार्य शुरू किया है।
उनके अनुसार, “सरकार को लैंडस्लाइड ट्रीटमेंट पर भारी खर्च उठाना पड़ता है, इसलिए यह निर्धारित किया जाता है कि किस स्थान पर कितनी आवश्यकता है और कौन से ज़ोन प्राथमिकता में रखे जाएं। विशेषज्ञों की सलाह के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाता है।”
उन्होंने यह भी कहा कि इस बार कई नई लैंडस्लाइड साइट्स उभर कर सामने आई हैं, और कुछ पुरानी साइट्स जो ट्रीटमेंट के बाद स्थिर थीं, वे भी असफल हो गई हैं। अब इन क्षेत्रों को फिर से ठीक करने की योजना पर विचार किया जा रहा है।
आपदा प्रबंधन विभाग करेगा विशेष अध्ययन
आपदा प्रबंधन विभाग ने ऐसे लैंडस्लाइड ज़ोन का अध्ययन कराने की तैयारी की है, जो बादल फटने या अतिवृष्टि के कारण हाल ही में विकसित हुए हैं। इस अध्ययन के आधार पर आने वाले समय में दीर्घकालिक समाधान की रणनीति बनाई जाएगी।