
देहरादून: उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह ने कहा कि हिमालयी सीमांत क्षेत्रों का विकास राष्ट्रीय सुरक्षा से सीधा जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि सीमांत गांवों में बुनियादी सुविधाओं का विस्तार न केवल स्थानीय जीवन स्तर को बेहतर बनाता है, बल्कि यह देश की रणनीतिक सुरक्षा को भी सुदृढ़ करता है।
राज्यपाल ने जोर देकर कहा कि सीमांत क्षेत्रों में सड़क, संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य और ऊर्जा जैसी सुविधाएं देश की सुरक्षा के लिए “मानव ढाल” की तरह कार्य करती हैं। इन इलाकों में मजबूत बुनियादी ढांचा न केवल सीमांत नागरिकों के जीवन को सुगम बनाता है, बल्कि किसी भी संभावित आपात स्थिति में सुरक्षा बलों को रणनीतिक सहयोग भी प्रदान करता है।
रिवर्स पलायन और स्थानीय उद्यमिता पर बल
राज्यपाल गुरमीत सिंह ने सीमांत इलाकों में स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देने और रिवर्स पलायन को प्रोत्साहित करने पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा कि अगर सीमांत गांवों के लोग अपने मूल स्थानों पर रहकर आजीविका के साधन विकसित करेंगे तो यह न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाएगा, बल्कि सीमाओं पर जनसंख्या उपस्थिति भी बनी रहेगी, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि स्थानीय उत्पादों, पारंपरिक हस्तशिल्प, और जैविक खेती जैसे क्षेत्रों में युवाओं को प्रशिक्षण और प्रोत्साहन देने की जरूरत है ताकि सीमांत क्षेत्र आत्मनिर्भर बन सकें।
भूगोल और संस्कृति आधारित विकास मॉडल की आवश्यकता
राज्यपाल ने यह भी कहा कि विकास योजनाओं को बनाते समय सीमांत क्षेत्रों के भौगोलिक, सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं को ध्यान में रखना जरूरी है। उन्होंने कहा कि हर क्षेत्र की अपनी विशिष्ट चुनौतियां और क्षमताएं हैं, इसलिए योजनाएं ‘एक आकार सब पर लागू’ के बजाय स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप तैयार की जानी चाहिए।
विभागीय समन्वय पर दिया जोर
राज्यपाल ने कहा कि सीमांत विकास को गति देने के लिए राज्य सरकार, केंद्र सरकार और स्थानीय निकायों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक स्तर पर एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने से न केवल योजनाओं का प्रभाव बढ़ेगा, बल्कि सीमांत क्षेत्रों में स्थायी विकास की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकेंगे।
राष्ट्रीय दृष्टि से रणनीतिक महत्व
राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखंड के सीमांत जिले — पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी — न केवल भौगोलिक रूप से महत्वपूर्ण हैं बल्कि इनका रणनीतिक और सांस्कृतिक महत्व भी अत्यधिक है। उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों का विकास, देश की सीमाओं की सुरक्षा और स्थायित्व दोनों के लिए आवश्यक है।