ओलंपिक में मनु की सफलता के पीछे गुरु जसपाल का निशानेबाजी के प्रति जुनून, पढ़ें संघर्ष की कहानी
जसपाल ने हमेशा ओलंपिक का लक्ष्य बनाया था, लेकिन उन्हें इस बात का अफसोस रहा कि स्टैंडर्ड पिस्टल और सेंटर-फायर पिस्टल ओलंपिक कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बने। जसपाल को प्रतिभा को आगे लाने का मौका तब मिला जब उन्हें जूनियर राष्ट्रीय कोच नियुक्त किया गया।
भारत के पूर्व पिस्टल निशानेबाज जसपाल राणा ने असाधारण प्रतिभा के तौर पर सुर्खियों में आने के बाद जूनियर रिकॉर्ड तोड़ा और कई अंतरराष्ट्रीय पदक जीते और उनकी इस यात्रा में उनका निशानेबाजी के प्रति जुनून और इसके प्रति समर्पण उनकी पहचान रही है। ओलंपिक पदक उनकी कैबिनेट में शामिल नहीं हो सका और रविवार को मनु भाकर के पोडियम पर खड़े होने से इस पद्म श्री पुरस्कार विजेता का सपना साकार हो गया। जब पोडियम पर कांस्य पदक मनु के गर्दन में दमक रहा था तो जसपाल स्टैंड में तालियां बजा रहे थे
किशोरावस्था से ही अलग-थलग रहने वाले जसपाल हमेशा किसी न किसी मामले में सुर्खियों में रहे हैं। चाहे इनमें कई बार वापसी करना हो, 30 की उम्र के बाद भी अपने करियर को बचाने की कोशिश करना हो, सिस्टम से लड़ाई लड़ना हो या फिर राजनीति में उतरना हो। दोहा 2006 के एशियाई खेलों के दौरान उन्होंने 102 डिग्री बुखार होने के बावजूद तीन स्वर्ण पदक जीते थे जो ऐसा रिकॉर्ड है जिसे कोई भी भारतीय निशानेबाज महाद्वीपीय टूर्नामेंट में कभी नहीं तोड़ पाया।
जसपाल के संघर्ष की कहानी
उनके लंबे बिखरे बाल उनके चेहरे से चिपके हुए थे और पसीना टपक रहा था जैसे किसी ने उन पर पानी की बोतल भर कर डाल दी हो। दोहा से लगभग 12 साल पहले 1994 के हिरोशिमा एशियाई खेलों में वह 25 मीटर सेंटर-फायर पिस्टल में स्वर्ण जीतने वाले चार भारतीयों में से एक थे। इससे ही भारतीय निशानेबाजों में प्रतिभा होने का भरोसा हुआ कि सरकार की थोड़ी सी मदद से वे विश्व विजेता बन सकते हैं।
उनकी यात्रा में उन्हें दुनिया के तत्कालीन अग्रणी पिस्टल कोचों में से एक टिबोर गोन्जालो ने सहायता की। वह लंबे समय तक भारत के कोच रहे। जसपाल को शायद गोन्जालो से सावधानी बरतने वाला स्वभाव विरासत में मिला है, जो एक नोटबुक, पेंसिल और गले में एक सीटी लटकाए घूमते थे और हर किसी की ताकत और कमजोरियों को नोट करते थे। टिबोर के साथ खड़े युवा जसपाल की छवि अभी भी उनके एफबी पेज पर मौजूद है।
जसपाल नहीं जीत सके ओलंपिक पदक
जसपाल ने हमेशा ओलंपिक का लक्ष्य बनाया था, लेकिन उन्हें इस बात का अफसोस रहा कि स्टैंडर्ड पिस्टल और सेंटर-फायर पिस्टल ओलंपिक कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बने। जसपाल को प्रतिभा को आगे लाने का मौका तब मिला जब उन्हें जूनियर राष्ट्रीय कोच नियुक्त किया गया। इसी दौरान उन्होंने मनु और सौरभ चौधरी की प्रतिभा देखी, दोनों ने 2021 में टोक्यो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
हालांकि, मनु के साथ अनबन के कारण टोक्यो से पहले दोनों के रास्ते अलग हो गए, जिससे हर कोई अनजान रह गया। जब वह 2018 जकार्ता एशियाई खेलों में भारतीय टीम के साथ थे, तो वह एक कठिन टास्कमास्टर थे। तब 16 वर्षीय मनु दबाव के माहौल में नई थी और हार मान ली थी और इससे जसपाल बहुत गुस्से में थे। खुद एक असाधारण प्रतिभा होने के कारण जसपाल को इस बात का अंदेशा हो गया था कि मनु उनकी तरह ही बनेगी। उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि वह अभी भी एक शर्मीली किशोरी थी जो हरियाणा के एक छोटे से जिले से आई थी और खेल की बेहद प्रतिस्पर्धी दुनिया में कदम रख रही थी।
इसके बाद टोक्यो ओलंपिक से पहले दोनों अलग हो गए। तब किस्मत ने मनु को धोखा दिया था। वब 10 मीटर एयर पिस्टल के फाइनल में जगह बनाने के करीब पहुंची, लेकिन पिस्टल की खराबी के कारण उनकी उम्मीदें खत्म हो गईं। टोक्यो के बाद झज्जर की इस शूटर के लिए चीजें खराब होने लगीं और जिस तरह से उनका जसपाल के साथ ‘ब्रेकअप’ हुआ था, उसी तरह ‘पैच-अप’ भी हो गया। शायद, उन्होंने जसपाल में एकमात्र कोच देखा जो उनके करियर को आकार दे सकता था। और, शायद, जसपाल ने उनमें एक प्रतिभा देखी थी जिसे वह सुधार कर अगले स्तर पर ले जा सकते थे। हर सत्र, हर परीक्षण में वह मनु पर पैनी नजर रखने लगे और किसी भी विशेषज्ञ, कोच या प्रशिक्षक को अपने वार्ड के करीब नहीं आने देते थे।
व्यक्तिगत प्रशिक्षकों के लिए राष्ट्रीय महासंघ के कड़े नियमों के कारण वह दर्शक दीर्घा तक ही सीमित थे, लेकिन उन्होंने जो सांकेतिक भाषा गढ़ी थी वह पर्याप्त थी। कमांड को जसपाल ने स्टैंड से रिले किया और फायरिंग बे पर मनु ने इसे स्वीकार भी किया। सब कुछ ‘टी’ पर प्लॉट किया गया है, चाहे वह पिस्तौल की लकड़ी की पकड़ हो, जिसे जसपाल ने मनु के लिए सावधानीपूर्वक तैयार किया हो, या उसकी पिस्तौल की फाइन-ट्यूनिंग हो। ओलिंपिक स्तर पर किसी भी गलती की कोई गुंजाइश नहीं है। मनु के पास पेरिस ओलंपिक में अभी भी दो और स्पर्धाएं – 25 मीटर स्पोर्ट्स पिस्टल और 10 मीटर मिश्रित टीम बाकी हैं। किसी और की तरह जसपाल को पता होगा कि आने वाले दिनों में मनु की सहनशक्ति के स्तर को कैसे बढ़ाया जाए।
मनु ने कोच जसपाल के लिए अमर उजाला से कही थी यह बात
मनु भाकर जब इस साल फरवरी में अमर उजाला संवाद में आई थीं, तो उनसे पूछा गया था- आपके कोच के बारे में हम जानना चाहते हैं। जसपाल राणा किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, लेकिन उन्होंने आपका कैसे ध्यान रखा और उनका आपकी जिंदगी में प्रभाव क्या है? इस पर मनु ने कहा था- मुझे लगता है कि यहां मौजूद काफी लोग जानते होंगे कि जसपाल राणा कौन हैं। वह खुद एक बहुत बड़े शूटर रह चुके हैं। वह काफी मेडल जीत चुके हैं, चाहे वह कॉमनवेल्थ गेम्स हो या एशियन गेम्स। मैं बहुत यंग थी जब उन्होंने मुझे सिखाना शुरू किया था। मेरा आत्मविश्वास उनसे आता है। मैं आज भी कहती हूं कि अगर मेरे कोच नहीं होते तो मेरा आत्मविश्वास बहुत कम होता। पिछले साल ही मैंने दोबारा उनके साथ काम करना शुरू किया।
मनु ने कहा था- कुछ लोग होते हैं जिन्हें देखकर आपका आत्मविश्वास आता है। किसी के लिए वह भाई होते हैं, किसी के लिए उनके माता पिता, मेरे लिए वह मेरे कोच हैं। जब भी उनको देखती हूं तो मुझे लगता है कि चाहे नतीजा कुछ भी हो, अच्छा हो बुरा हो, गोल्ड जीतूं या नहीं जीतूं वो सब संभाल लेंगे। हम दोनों का ऐसा बॉन्ड है। वो मेरे गॉड फादर हैं। मैं उनकी हर बात मानती हूं। वो कहते हैं ये मैच खेलना है तो खेलना है, ये मैच नहीं खेलना तो नहीं खेलती हूं। रोज छह बजे उठना है तो उठना है, रोज योगा करना है तो करना है तो मेरी उनसे इसी तरह की बॉन्डिंग है।