लोक संस्कृति के रंग में रंगी मेयर, डीएम और नगर आयुक्त — सोशल मीडिया पर छा गईं तीनों अधिकारी
महापौर आरती भंडारी, डीएम स्वाति एस. भदौरिया और नगर आयुक्त नूपुर वर्मा ने पहने पहाड़ी परिधान, बढ़ाया उत्तराखंड की लोक संस्कृति का मान

उत्तराखंड की लोक संस्कृति का जादू इन दिनों प्रशासनिक जगत पर भी देखने को मिल रहा है। संस्कृति से जुड़ाव और परंपराओं के सम्मान का एक शानदार उदाहरण तब सामने आया, जब प्रदेश की तीन महिला अधिकारी — डीएम स्वाति एस. भदौरिया, महापौर आरती भंडारी और नगर आयुक्त नूपुर वर्मा — पारंपरिक पहाड़ी परिधान में नजर आईं। इनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं, और लोग इन्हें “अपनी संस्कृति से जुड़ी हुई असली नायिकाएं” कहकर सराह रहे हैं।
लोक संस्कृति में रचा-बसा प्रशासन
उत्तराखंड में अक्सर अफसरों और जनता के बीच एक दूरी महसूस की जाती है, लेकिन इन तीन महिला अधिकारियों ने अपने व्यवहार और परिधान दोनों से यह दूरी मिटा दी। बैकुंठ चतुर्दशी मेले के अवसर पर आयोजित पारंपरिक फैशन शो में तीनों अधिकारी पहाड़ी पोशाक पहनकर मंच पर पहुंचीं। स्थानीय परिधान और गहनों से सजी इनकी झलक ने वहां मौजूद हर व्यक्ति का दिल जीत लिया।
डीएम स्वाति एस. भदौरिया ने बताया कि यह पहल केवल एक सांस्कृतिक प्रदर्शन नहीं, बल्कि अपनी जड़ों से जुड़ने और स्थानीय संस्कृति को सम्मान देने का प्रयास है। महापौर आरती भंडारी और नगर आयुक्त नूपुर वर्मा ने भी कहा कि जब अधिकारी अपनी संस्कृति को जीते हैं, तो जनता के साथ आत्मीय संबंध और मजबूत होते हैं।
बैकुंठ चतुर्दशी मेले की भव्यता
बैकुंठ चतुर्दशी मेला गढ़वाल क्षेत्र का एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है। यह हर वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष की बैकुंठ चतुर्दशी से आरंभ होता है। इस बार मेला विशेष रूप से आकर्षक रहा, क्योंकि इसे नगर निगम और जिला प्रशासन के संयुक्त प्रयास से बड़े पैमाने पर आयोजित किया गया।
मेले में लोक कलाकारों की प्रस्तुतियां, पारंपरिक व्यंजन, हस्तशिल्प प्रदर्शन और सांस्कृतिक झांकियों ने लोगों को खूब आकर्षित किया। मेले का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि उत्तराखंड की लोक परंपराओं, वेशभूषा और हस्तकला को प्रोत्साहित करना भी है।
सोशल मीडिया पर तारीफों की बौछार
तीनों अधिकारी महिलाओं की तस्वीरें जब सोशल मीडिया पर आईं, तो देखते ही देखते वायरल हो गईं। लोगों ने कमेंट कर कहा कि यह “नए उत्तराखंड” की झलक है — जहां प्रशासन और संस्कृति साथ-साथ आगे बढ़ रहे हैं।
कई लोगों ने लिखा कि ऐसे प्रयास न केवल लोक संस्कृति को संजीवनी देते हैं, बल्कि यह संदेश भी देते हैं कि आधुनिकता के साथ परंपरा को जिया जा सकता है।