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सुल्तानपुर: पिता की शव यात्रा में बेटे ने साथियों संग किया जमकर डांस, तेरहवीं पर बजवाया डीजे

वीडियो में देखा जा सकता है कि कैसे बेटा अपने पिता की अंतिम यात्रा में साथियों संग नाच रहा है. शव को जब बाजार से होते हुए श्मशान घाट की तरफ लाया जा रहा है तो अंतिम यात्रा में ढोल नगाड़े बज रहे हैं.

उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में एक बेटे ने अपने पिता के निधन के बाद उन्हें इस अंदाज में अंतिम विदाई दी कि पूरा गांव हैरत में पड़ गया. अंतिम यात्रा में शामिल लोग उसे देखते रह गए. घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. जिसमें बेटा श्मशान घाट पर नाच रहा है. आइए जानते हैं पूरा मामला…

दरअसल, घटना तकरीबन 20 दिन पुरानी है लेकिन इसका वीडियो अब सोशल मीडिया पर सामने आया है. वीडियो में देखा जा सकता है कि कैसे बेटा अपने पिता की मौत पर साथियों संग अंतिम यात्रा में नाच रहा है. वहीं, शव को जब बाजार से होते हुए श्मशान घाट की तरफ लाया जा रहा है तो उसमें ढोल- नगाड़े बज रहे हैं. बैंड बाजे की धुन में बेटा पिता के शव पर नोटों की गड्डियां भी लुटा रहा है.

आपको बता दें कि नगर कोतवाली क्षेत्र अंतर्गत नारायणपुर इलाके के दुर्गापुर मोहल्ले के निवासी श्रीराम के पिता राम किशोर मिश्रा का निधन कुछ दिन पूर्व हो गया था. राम किशोर ने 80 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद दुनिया को अलविदा कहा. निधन के बाद राम किशोर की शव यात्रा में बेटे श्रीराम ने बैंड बजवाया और जश्न मनाया. इसके बाद अंतिम संस्कार शहर के हथिया नाला स्थित श्मशान घाट पर हुआ.

 

पिता की अंतिम यात्रा में बेटे का जश्न

 

अंतिम यात्रा के दौरान श्रीराम ने अपने साथियों संग पिता के शव के सामने जमकर डांस किया और पैसे लुटाए. इतना ही नहीं अंतिम संस्कार के भोज (तेरहवीं) में भी बैंड बाजे के साथ लोगों को भोजन कराया गया. परिवार और घरवाले भी मुखिया के निधन पर जश्न मानते और नाचते गाते नजर आए. घर पर डीजे लगवाया गया था.

 

बेटे ने दिया ये तर्क

 

पिता की ऐसी विदाई पर बेटे श्रीराम का अपना अलग ही तर्क है. उनकी माने तो अंतिम विदाई रो-गाकर करनी ही नहीं चाहिए. रोने से जाने वाले की आत्मा को तकलीफ होती है. मृत्यु भी जीवन का एक उत्सव है और उसे इसी तरह मनाया जाना चाहिए.

 

बकौल श्रीराम- किसी इंसान का अपनी सभी जिम्मेदारियों के निर्वाह के बाद लगभग पूर्ण आयु में जाना अच्छा ही माना जाता है. जहां एक ओर कुछ लोग इसे सही नहीं मानते, तो वहीं कुछ लोग इसे सही ठहराते हैं. देखना है कि आज के बदलते परिवेश में समाज इसे अपनाता है या तिरस्कार करता है.

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