
देहरादून: उत्तराखंड के व्यापार और उद्योग मंडलों में अध्यक्ष पद के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू होते ही एक दिलचस्प तस्वीर देखने को मिल रही है। जहां मंडल में सक्रिय वोटरों की संख्या सीमित और लगभग गिनती के बराबर है, वहीं उम्मीदवारों की संख्या कई गुना अधिक है। यह स्थिति व्यापार मंडलों के चुनावी मैदान को देखते ही बनती जा रही है।
जानकार बताते हैं कि कई पदों के लिए अनेक उम्मीदवार मैदान में हैं, और हर कोई अपनी ‘क्रांति’ की बात कर रहा है। व्यापारियों का कहना है कि चुनाव प्रचार में नेताओं ने बड़े-बड़े वादे किए हैं, लेकिन वोटरों की वास्तविक संख्या पर शायद ही किसी ने ध्यान दिया। इसका असर यह हो रहा है कि चुनावी माहौल में जोर-शोर से चर्चा और घोषणा होती है, लेकिन वोट देने वाले सदस्य अपेक्षाकृत कम हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति उत्तराखंड के व्यापारिक लोकतंत्र में एक चुनौती पेश कर सकती है। कम वोटरों के बीच अधिक उम्मीदवार होने से चुनाव प्रक्रिया जटिल और परिणाम असमंजसपूर्ण हो सकते हैं। इस कारण निर्णय और नेतृत्व की वैधता पर भी सवाल उठ सकते हैं।
व्यापारी वर्ग ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उम्मीदवारों की संख्या और प्रचार की होड़ देखकर ऐसा लगता है कि “पूरा उत्तराखंड ही क्रांति करने उतर पड़ा है”, लेकिन भूल गए कि यह क्रांति **असली वोटरों के लिए कितनी मायने रखती है।”
उल्लेखनीय है कि अध्यक्ष पद के अलावा महासचिव, कोषाध्यक्ष और अन्य पदों के लिए भी कई नामांकन हुए हैं, और चुनाव प्रक्रिया को लेकर उत्साह और उत्सुकता दोनों देखने को मिल रही है। मंडल प्रशासन ने सुनिश्चित किया है कि निर्वाचन प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष रहे, ताकि वास्तविक व्यापारिक सदस्य ही अपने प्रतिनिधियों का चयन कर सकें।