उत्तराखंड

उत्तराखंड की ऊन को मिलेगा “हिमालयी हर्बल ऊन” का दर्जा,

भेड़पालकों को मिलेगा सीधा लाभ हथकरघा एवं हस्तशिल्प क्षेत्र को नई दिशा देने में जुटे राज्यमंत्री वीरेंद्र दत्त सेमवाल

देहरादून:  उत्तराखंड की ऊन को अब “हिमालयी हर्बल ऊन” के रूप में पहचान दिलाने की दिशा में ठोस पहल की जा रही है। यह जानकारी राज्य हथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास परिषद के राज्यमंत्री वीरेंद्र दत्त सेमवाल ने दी। टेक्सटाइल इंजीनियर और पूर्व में केंद्र सरकार में कपड़ा मंत्री के सलाहकार रह चुके सेमवाल ने हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात कर हस्तशिल्प और ऊन उद्योग की समस्याओं व समाधान पर चर्चा की।

उन्होंने बताया कि प्रदेश की भेड़ें प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से युक्त चारागाहों में चरती हैं, जिससे उनकी ऊन में औषधीय गुण होते हैं। यह “हिमालयी हर्बल ऊन” अंतरराष्ट्रीय बाजार में विशिष्ट पहचान बना सकती है। इससे न केवल प्रदेश के ऊन उद्योग को नई दिशा मिलेगी, बल्कि भेड़पालकों को भी आर्थिक रूप से सीधा लाभ होगा।

भेड़पालकों की समस्याएं बनीं सरकार की प्राथमिकता

राज्यमंत्री ने बताया कि अपने क्षेत्रीय भ्रमण के दौरान यह बात सामने आई कि कई भेड़पालक उचित मूल्य न मिलने के कारण ऊन को जंगलों में फेंकने को मजबूर हैं। उन्होंने कहा, “जब आज के समय में घरों का कचरा तक बिकता है, तो हमारी जैविक और कीमती ऊन का यूं बर्बाद होना अत्यंत चिंता का विषय है।”

दायित्व मिलने के बाद सेमवाल लगातार प्रदेश के विभिन्न जिलों में भ्रमण कर रहे हैं। उन्होंने जिला उद्योग केंद्रों, ग्रोथ सेंटरों और खादी ग्रामोद्योग इकाइयों का निरीक्षण कर वहां की समस्याओं का प्रत्यक्ष अध्ययन किया। कई केंद्रों पर लाखों रुपये की मशीनें मरम्मत के अभाव में बंद पड़ी हैं, जबकि कारीगर संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं।

राज्यमंत्री ने बताया कि राज्य के कई जिलों में कारीगरों को उनके उत्पादों के लिए बाज़ार नहीं मिल पा रहा है। इस चुनौती से निपटने के लिए सरकार विपणन तंत्र को मज़बूत कर रही है और 13 जिलों में नए केंद्रों की स्थापना की योजना पर काम हो रहा है।

साथ ही पारंपरिक डिज़ाइनों को आधुनिक मॉडल के साथ जोड़ने की दिशा में भी कार्य योजना बनाई जा रही है, जिससे स्थानीय शिल्प को नया बाज़ार और नई पहचान मिले।सेमवाल ने कहा कि सरकार का लक्ष्य राज्य की जैविक और सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक पहचान दिलाना है। “लोकल टू ग्लोबल” की अवधारणा को साकार कर स्थानीय लोगों को आत्मनिर्भर बनाना सरकार की प्राथमिकता है।

 

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