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उत्तराखंड में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (EIECC) की 43 सदस्यीय सूची को लेकर बवाल हो गया। सूची में पांच विधायकों के साथ ही कई वरिष्ठ नेताओं के नाम नहीं हैं। इससे पार्टी के भीतर असंतोष गहरा गया है।
पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह का नाम सूची में है, लेकिन उनके करीबियों को किनारे रखा गया है। इससे नाराज प्रीतम सिंह ने पार्टी के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि प्रभारी जिस प्रकार तुगलकी तरीके से निर्णय कर रहे हैं, उसका परिणाम प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव और निकाय चुनाव पर दिखाई पड़ेगा।
त्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 24 फरवरी से कांग्रेस का तीन दिनी अधिवेशन होना है। इससे पहले एआइसीसी की ओर से उत्तराखंड के सदस्यों की सूची सोमवार को जारी की गई। इसमें 30 निर्वाचित और 13 सदस्य नामित किए गए हैं। निर्वाचित सदस्यों में प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल, काजी निजामुद्दीन, प्रदीप टम्टा, प्रकाश जोशी, मनोज तिवारी, हरीश धामी सम्मिलित हैं।
ममता राकेश, फुरकान अहमद, राजेंद्र भंडारी, विक्रम सिंह नेगी, रवि बहादुर, सुमित हृदयेश, आदेश चौहान, उपनेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी, वीरेंद्र जाति, रंजीत रावत, हीरा सिंह बिष्ट, डा हरक सिंह रावत, मनीष खंडूड़ी व सूर्यकांत धस्माना भी सदस्य बनाए गए हैं। गुरदीप सिंह सप्पल, ब्रहमस्वरूप ब्रहमचारी, आर्येंद्र शर्मा, वैभव वालिया भी सदस्य बने हैं।
प्रदेश युवक कांग्रेस अध्यक्ष सुमित्तर भुल्लर व महिला कांग्रेस अध्यक्ष ज्योति रौतेला भी सदस्य बनाई गई हैं। शूरवीर सजवाण, अनुपमा रावत, मथुरादत्त जोशी, विजय सारस्वत, मनोज रावत, ललित फस्र्वाण, अनुपम शर्मा, राजपाल बिष्ट, गरिमा दसौनी, सरोजनी कैंतुरा, हेमलता पुरोहित, विकास नेगी व इशिता सेढ़ा को नामित सदस्यों में सम्मिलित किया गया है।
43 सदस्यीय सूची में पांच विधायकों मयूख महर, मदन बिष्ट, गोपाल राणा, खुशहाल सिंह अधिकारी और तिलकराज बेहड़ के नाम सम्मिलित नहीं किए गए हैं। इन विधायकों में अधिकतर पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह के करीबी भी माने जाते हैं। प्रीतम सिंह का प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव से खिंचाव बना हुआ है।
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एआइसीसी की सूची जारी होते ही पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ने इस पर आपत्ति की। उन्होंने कहा कि वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। प्रदेश प्रभारी का दायित्व प्रदेश के नेताओं के साथ समन्वय स्थापित करना है, गुटबाजी को बढ़ावा देना नहीं है। उन्होंने कहा कि उत्तरकाशी और चंपावत जिले को प्रतिनिधित्व तक नहीं दिया गया। वहीं सूची में ऐसे भी नाम सम्मिलित हैं जो अन्य राज्यों की राजनीति में सक्रिय हैं, लेकिन उन्होंने आवास यहां बनाया है।