
देहरादून।
शुक्रवार को उत्तराखण्ड राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष कुसुम कण्डवाल की अध्यक्षता में उत्तराखण्ड राज्य में मानव तस्करी एवं अनैतिक देह व्यापार विषय पर बैठक का आयोजन किया गया। बैठक के दौरान कामिनी गुप्ता, सदस्य-सचिव, उत्तराखण्ड राज्य महिला आयोग द्वारा समस्त उपस्थितजन का आभार व्यक्त करते हुए बैठक का शुभारम्भ किया गया। पीοरेणुका, पुलिस उपमहानिरीक्षक (अपराध एवं कानून व्यवस्था), देहरादून द्वारा जानकारी देते हुए यह बताया गया कि राज्य में रिहैब्लीटेशन सैण्टर बनाया जाना अनिवार्य है। महिलाओं एवं बच्चों के विरूद्ध लगातार अपराध बढ़ते जा रहे हैं, जिसको रोका जाना पुलिस के लिए चुनौतिपूर्ण विषय है। बच्चों के विरूद्ध भी अपराध बढ़ रहे हैं। लोगों में जागरूकता बढ़ी है किन्तु अपराध में भी बढोतरी हो रही है। महिलाओं एवं बच्चों के विरूद्ध बढ़ रहे अपराध से सम्बन्धित कानूनों को लागू कराया जाना आवश्यक है। प्रत्येक जनपद में एण्टी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सैल बनायी गयी है, जो सुचारू रूप से अपना कार्य कर रही है। मानव तस्करी में पीड़िता को मुआवजा मिलना आवश्यक है। कई एन० जी०ओ० ऐसे हैं जो पीडिता के पुनर्वास का कार्य करते हैं किन्तु नारी निकेतन / बालिका निकेतन मे महिलाएं रहना ही नहीं चाहती हैं। रिहैब्लीटेशन सैण्टर ऐसे बनने अनिवार्य हैं, जिनमें काउंसिलिंग हो / पीडिता की आर्थिक मदद हो एवं उसके रोजगार के लिए भी सुविधा हो। उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ एवं गढ़वाल क्षेत्र में अलग-अलग रिहैब्लीटेशन सैण्टर बनना आवश्यक है। बैठक में उपस्थित अखिलेश मिश्रा, नोडल अधिकारी, राज्य महिला संसाधन केन्द्र, देहरादून द्वारा जानकारी देते हुए बताया गया कि बाल विकास विभाग की ओर से राज्य के प्रत्येक जनपद में स्वधार गृह चल रहे थे, जो वर्तमान समय में बन्द हो गये हैं। स्वधार गृहों को पुर्नजीवित किया जाना अनिवार्य है क्योंकि वहां पर पीडित महिलाओं / बच्चियों के रहने / खाने / ईलाज इत्यादि की अच्छी व्यवस्था होती थी। राजेश चतुर्वेदी, मिशन रेस्क्यू ऑपरेशन, देहरादून द्वारा यह कहा गया कि भिखारी महिला एवं देह-व्यापार में लिप्त महिला में काफी अन्तर होता है। अगर किसी भिखारी महिला को रेस्क्यु किया जाता है तो उसकी काउंसिलिंग बहुत आसानी से की जा सकती है क्योंकि उसका मानसिक स्तर बहुत ज्यादा खराब नहीं होता है किन्तु देह-व्यापार में लिप्त महिला का मानसिक स्तर काफी खराब हो चुका होता है। राजेश द्वारा अपने एन०जी०ओ० से सम्बन्धित अनुभव बताये गये। पीडिताओं को आर्थिक मदद दिया जाना अनिवार्य है। राजेश बहुगुणा, डीन, उत्तरांचल यूनिवर्सिटी, देहरादून द्वारा यह कहा गया कि मानव तस्करी का अभिन्न अंग बाल / बंधुवा मजदूरी है। कई महिलायें अपनी ईच्छानुसार भी इस कृत्य में शामिल हो जाती हैं। मानव तस्करी को जड़ से खत्म किया जाना अनिवार्य है। आयोग स्तर से इस विषय पर स्टडी कराया जाना अत्यन्त अनिवार्य है कि क्यों महिलायें स्वयं इस कार्य को करने के लिए तैयार हो रही हैं। इसके अतिरिक्त महिला आयोग द्वारा कई संस्थानों के साथ मिलकर इस विषय पर कार्य करने की आवश्यकता है। ज्ञानेन्द्र, इम्पावरिंग पिपुल सोसाएटी, एन०जी०ओ० द्वारा यह कहा गया कि मानव तस्करी की चेन को तोडना पहला कदम होगा क्योंकि कई बार पीडित महिला पुनः इस कार्य को करने के लिए तैयार रहती हैं। रिहैब्लीटेशन सैण्टरर्स की निगरानी भी किया जाना अनिवार्य है। मोहित चौधरी, राज्य परीविक्षा अधिकारी, महिला कल्याण, देहरादून द्वारा कहा गया कि सभी आगनबाडी केन्द्रों / पंचायत घरों इत्यादि स्थानों पर राज्य में संचालित एण्टी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सैल के दूरभाष नम्बर चस्पा कराया जाना अत्यन्त अनिवार्य है। मीना बिष्ट, जिला प्रोबेशन अधिकारी, देहरादून द्वारा नारी निकेतन एवं शरणालय केन्द्रों के विषय में जानकारी दी गयी। अन्त में अध्यक्ष द्वारा सभी उपस्थितजन से मानव तस्करी को रोकने हेतु समन्वय से कार्य करने पर जोर दिया गया तथा समस्त उपस्थितजन का आभार व्यक्त किया गया।