
देहरादून,। उत्तराखंड में कांग्रेस के अपने नेता ही उसकी बुरी गत करने में जुटे हैं। हालिया विधानसभा चुनाव में हार के बाद यह समझा जा रहा था कि कांग्रेस प्रदेश में सक्रिय विपक्ष की भूमिका निभाते हुए खुद को मजबूत करने में जुटेगी, पर गुटों में बंटी कांग्रेस के नेता अब सार्वजानिक रूप से शीर्ष नेतृत्व को भी चुनौती देने लगे हैं। पार्टी हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष एवं विधानसभा में नेता, उपनेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति क्या की, हार के बाद से शांत दिख रही कांग्रेस में तूफान आ गया। लगता है गुटबाजी, अनुशासनहीनता उत्तराखंड में कांग्रेस की नियति सी बन गई है।अक्सर चुनावी हार के बाद राजनीतिक दल गंभीरता से हार के कारणों की विवेचना करते हैं, जनादेश के मायने समझते हैं और आगे की रणनीति तय करते हैं, पर उत्तराखंड कांग्रेस में ऐसा कुछ नहीं हो रहा। हार का कारण एक तीसरी पांत के नेता के मुस्लिम युनिवर्सिटी को लेकर दिए गए बयान को बना दिया गया और कार्रवाई के नाम पर लगभग सात माह पहले ही प्रदेश अध्यक्ष बने गणोश गोदियाल से त्यागपत्र ले लिया गया। इस रस्म को निभाए जाने के बाद मुख्यमंत्री का चेहरा बने हरीश रावत, प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव और तमाम बड़े नेता पूरी ठसक के साथ फिर प्रदेश कांग्रेस में मंचासीन हैं। नेताओं का गत पखवाड़ा खींचतान और फिर उसे दबाने में ही बीता। फिलहाल नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष, उपनेता प्रतिपक्ष गंदगी को कालीन से ढकने में लगे हुए हैं। पार्टी हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष के पद पर करन माहरा, नेता प्रतिपक्ष के पद पर यशपाल आर्य और उपनेता पद पर ऊधम सिंह नगर की खटीमा सीट से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को हराने वाले विधायक भुवन कापड़ी की नियुक्ति की है। ब्राह्मण, ठाकुर एवंअनुसूचित जाति का समीकरण बैठाते हुए पार्टी हाईकमान जातीय समीकरण बनाने के चक्कर में उत्तराखंड की राजनीति में महत्वपूर्ण क्षेत्रीय समीकरण को पूरी तरह से भूल बैठी। तीन महत्वपूर्ण पद कुमाऊं मंडल को चले गए। राज्य की 70 विधानसभा सीटों में 41 गढ़वाल मंडल से हैं। इस तरह तीनों पद 29 सीट वाले कुमाऊं मंडल के पास चले गए। चौथे स्वनामधन्य हरीश रावत भी कुमाऊं मंडल से ही हैं। इस तरह गढ़वाल को पूरी तरह से खारिज कर देने के पीछे की वजह वर्ष 2024 के चुनावी समर में गढ़वाल से कोई उम्मीद न रखना एवं कुमाऊं की दो सीटों पर फोकस करना भी हो सकता है। प्रदेश की पांच लोकसभा सीटों में से तीन गढ़वाल मंडल एवं दो कुमाऊं मंडल से आती हैं। नई नियुक्तियों को लेकर पार्टी किस कदर दोफाड़ है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कांग्रेस मुख्यालय में नए प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा के पदभार ग्रहण करने के लिए आयोजित समारोह में पार्टी के 19 विधायकों में से 11 अनुपस्थित रहे। जो मौजूद रहे भी तो उन्होंने खरी-खरी सुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विधानसभा में नेता तथा उपनेता प्रतिपक्ष के पदभार ग्रहण करने के दौरान भी नौ विधायक अनुपस्थित रहे। विधायकों का यह विरोध प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव एवं हरीश रावत की उपस्थिति में प्रदर्शित हुआ।