उत्तर भारत में आपदाओं का कहर, बड़ी संख्या में वाहन क्षतिग्रस्त

देहरादून: उत्तर भारत में चल रहे आपदा के इस दौर में जान माल के भारी नुकसान के साथ वाहनों की भी बड़ी मात्रा में क्षति हो रही है. आपदा की चपेट में आए वाहनों का अंजाम क्या होता है? क्या इन्हें कोई क्लेम या फिर मुआवजा मिलता है या नहीं? जानिए हमारी इस खास रिपोर्ट में।
इस बार का मानसून उत्तर भारत के लिए आफत बनकर आया है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पंजाब जैसे पहाड़ी राज्यों में हालात लगातार नाजुक बने हुए हैं। भारी बारिश, भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाओं ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है।
विशेष रूप से उत्तराखंड की बात करें तो जुलाई के आखिर से लेकर अगस्त और अब सितंबर तक भी मौसम राहत देने के मूड में नजर नहीं आ रहा। राज्य में आपदाओं की एक लंबी श्रृंखला ने लोगों को बेहाल कर दिया है। यही हाल पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश का भी है, जहां लगातार बारिश और भूस्खलन से बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है।
आपदा के हर वीडियो और तस्वीरों में जहां लोगों की जान-माल की भारी क्षति सामने आ रही है, वहीं क्षतिग्रस्त वाहनों की भी लंबी कतारें देखने को मिल रही हैं। सड़क किनारे बहते, दबे या पूरी तरह नष्ट हुए वाहनों का मंजर इस तबाही की गंभीरता को साफ बयां करता है।
स्थानीय प्रशासन और आपदा प्रबंधन टीमें राहत और बचाव कार्य में जुटी हुई हैं, लेकिन लगातार बिगड़ते मौसम ने हालात को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
प्राकृतिक आपदाओं में क्षतिग्रस्त वाहनों पर नहीं मिलती कोई राहत राशि
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे पर्यटन राज्यों में हर साल लाखों पर्यटक टैक्सी या अपने निजी वाहनों से पहुंचते हैं। लेकिन इस बार के आपदा सीजन ने उनके लिए भी भारी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।
बारिश और भूस्खलन की घटनाओं के बीच कई बार ऐसा हुआ जब चलते वाहन पर अचानक पहाड़ी से बोल्डर गिर गए और पूरा वाहन चकनाचूर हो गया। कई घटनाओं में रात के समय जिस जगह वाहन खड़े किए गए, वहां अचानक मलबा आ गया और गाड़ियां उसमें दब गईं। कुछ मामलों में तो तेज धाराओं में वाहन बहते हुए भी देखे गए। यहां तक कि कई बार सुबह उठने पर लोगों ने पाया कि जहां गाड़ी खड़ी की थी, वहां उसका नामोनिशान तक नहीं बचा।
सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि ऐसी आपदाओं में वाहनों को कोई भी राहत राशि नहीं दी जाती। जान-माल की हानि पर मुआवज़े का प्रावधान जरूर है, लेकिन वाहनों की क्षति के लिए कोई आर्थिक सहायता उपलब्ध नहीं होती। इससे स्थानीय लोगों और पर्यटकों दोनों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।