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“अजय देवगन की ‘रेड 2’: पुरानी चमक में नई झलक या खाली प्रचार?”

फिल्म रिव्यू: रेड 2

रेटिंग: 3.5/5

निर्देशक: राज कुमार गुप्ता
कलाकार: अजय देवगन, रितेश देशमुख, वाणी कपूर, सुप्रिया पाठक, सौरभ शुक्ला, अमित सियाल

कहानी में कितना दम है?

‘रेड 2’ एक बार फिर हमें मिलवाती है अमेय पटनायक से — वही ईमानदार, दबंग इनकम टैक्स अफसर जो सिस्टम की गलियों से जूझता हुआ सत्ता की ऊंची कुर्सियों पर बैठे भ्रष्ट नेताओं की नींव हिला देता है। इस बार उनका टारगेट हैं भोज राज्य के ताकतवर मंत्री (रितेश देशमुख), जिनका महलनुमा घर, जनता के लिए दिखावे की दरियादिली और भीतर छुपा काले धन का साम्राज्य, सब कुछ परत दर परत खुलता है।

हालांकि कहानी में दम है, लेकिन इसकी प्रस्तुति अपेक्षाकृत साधारण है। फिल्म की स्क्रिप्ट पहले हिस्से जैसी लगती है — सेट पैटर्न, जानी-पहचानी चालें और क्लाइमैक्स की पूर्वानुमेयता। यह फिल्म उन दर्शकों के लिए ज्यादा है जो ‘रेड’ के प्रशंसक रहे हैं और एक बार फिर उसी किरदार को पर्दे पर देखना चाहते हैं। लेकिन जो दर्शक एक ताज़गीभरी कहानी या नए ट्विस्ट की उम्मीद लेकर आते हैं, उनके लिए ये अनुभव फीका पड़ सकता है।

निर्देशन और स्क्रीनप्ले:

राज कुमार गुप्ता ने एक बार फिर कमान संभाली है और ‘रेड’ के उसी विजुअल और नैरेटिव टोन को बनाए रखा है। मगर यही उनकी सबसे बड़ी कमी भी बन जाती है। डायरेक्शन में नया कुछ भी नहीं है — वही रेड की रणनीति, वही जनता की तालियां, वही अफसर की इमेज को देवता समान दिखाना। यहां तक कि सरकारी अफसरों का अजय देवगन के पाँव छूना तक दिखाया गया है, जो रियलिज्म से थोड़ा दूर हटता है।

हालांकि लेखन में कुछ जगह संवादों की चमक दिखाई देती है। जैसे, जब अमेय खुद को ‘महाभारत’ बताते हैं — यह डायलॉग सिनेमाई और राजनीतिक दोनों स्तर पर गूंजता है। लेकिन फिल्म की लंबाई और कुछ दृश्य जबरदस्ती ठूंसे गए से लगते हैं, जो इसकी गति को धीमा कर देते हैं।

अभिनय: किसने मारी बाज़ी?

अजय देवगन ने एक बार फिर अपने ‘Mr. Reliable’ टैग को कायम रखा है। वह अपने रोल में संजीदा, नियंत्रित और प्रभावशाली नजर आते हैं। उनका अभिनय बिना अधिक ऊँची आवाज़ या नाटकीयता के असर छोड़ता है।

रितेश देशमुख फिल्म के विलेन हैं और उन्होंने पूरी ईमानदारी से एक भ्रष्ट, नकली धर्मनिरपेक्ष नेता का किरदार निभाया है जो जनता के सामने देवी मां की मूरत चूमता है और परदे के पीछे हैवानियत की मिसाल बन चुका है। हालांकि उनका किरदार थोड़ा कैरिकेचर हो जाता है, लेकिन उनके अभिनय में दम है।

वाणी कपूर फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी हैं। उनका किरदार स्क्रिप्ट में काफी सीमित है और ‘रेड’ की इलियाना की तरह सशक्त प्रभाव नहीं छोड़ पाता।

सौरभ शुक्ला और अमित सियाल जैसे अनुभवी कलाकारों को अधिक स्क्रीन टाइम मिलता तो फिल्म में और जान आ सकती थी। फिर भी जो काम मिला, उसमें वे प्रभावी रहे।

तकनीकी पक्ष और म्यूजिक:

फिल्म की सिनेमैटोग्राफी साधारण है। सेट्स और बैकड्रॉप ‘रेड’ जैसी ही दुनिया रचते हैं, लेकिन कोई नया दृश्य अनुभव नहीं देते।
एक्शन कोरियोग्राफी (आर.पी. यादव) कसी हुई है, और कुछ दृश्य सस्पेंस के साथ दर्शकों को बांधते हैं।

म्यूजिक फिल्म का सबसे कमजोर पक्ष है। राहत फतेह अली खान का ‘तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी’ का रीमिक्स असर नहीं छोड़ता। ‘पैसा ये पैसा’ क्लाइमेक्स में बजता है और कुछ हद तक माहौल बनाता है, लेकिन ओवरऑल संगीत याद नहीं रहता।

फिल्म का संदेश और व्याख्या:

‘रेड 2’ केवल भ्रष्टाचार और काले धन की कहानी नहीं है। यह उस अफसर की भी कहानी है जो सिस्टम से जूझते हुए भी सिस्टम का हिस्सा बनकर उसकी मरम्मत करता है। अमेय पटनायक की ये लड़ाई उस सच्चाई को भी उभारती है कि देश में आज भी कुछ ऐसे अफसर होते हैं जो ईमानदारी की मिसाल बन सकते हैं।

फिल्म यह भी बताती है कि सच्चाई तक पहुँचने के लिए कभी-कभी ईमानदारी को चतुराई के साथ मिलाना पड़ता है — और यही अमेय की असली ताकत है।

अंतिम राय: देखे या नहीं?

अगर आप अजय देवगन के फैन हैं, और ‘रेड’ जैसी फिल्मों में ईमानदार हीरो की जीत देखना पसंद करते हैं तो ‘रेड 2’ आपकी पसंद बन सकती है।
लेकिन यदि आप एक नई, ताज़ा कहानी की तलाश में हैं, या सिनेमा में नयापन देखने की उम्मीद कर रहे हैं, तो यह फिल्म शायद आपको निराश करे।

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