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उत्तराखंड में प्री-मानसून का कहर: 22 दिनों में 65% अधिक बारिश, मौसम वैज्ञानिक हैरान

देहरादून : उत्तराखंड में इस वर्ष प्री-मानसूनी बारिश ने असामान्य रूप ले लिया है। मई महीने के 22 दिनों में राज्य भर में सामान्य से 65 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है, जिससे मौसम विज्ञानी भी चकित हैं। यह स्थिति पूरे उत्तराखंड में गर्मी के मौसम को महसूस नहीं होने दे रही है।

असामान्य मौसमी पैटर्न

मई और जून के महीने में जब गर्मी अपने चरम पर होती है, उत्तराखंड में इस बार मई की शुरुआत ही बारिश से हुई। लगातार होने वाली वर्षा ने तापमान को नियंत्रित रखा है और गर्मी की तीव्रता को कम किया है। कुछ दिनों को छोड़कर ऐसा लग रहा है जैसे इस वर्ष गर्मी का मौसम आया ही न हो।

विक्रम सिंह, निदेशक, उत्तराखंड मौसम विज्ञान केंद्र का कहना है, “राज्य में इस बार मई महीने के दौरान काफी ज्यादा बारिश देखी जा रही है। लेकिन इसका असर मानसून पर पड़ेगा ऐसा नहीं दिखाई दे रहा। इस बार मानसून में ज्यादा बारिश होने का आकलन किया गया है। ऐसे में मई महीने में ही लगातार बारिश का होना मानसून से पहले का ट्रेलर माना जा सकता है।”

जिलेवार बारिश का आंकड़ा

सर्वाधिक वर्षा वाले जिले:

  • हरिद्वार: सामान्य से 175% अधिक बारिश
  • टिहरी गढ़वाल: 143% अधिक वर्षा
  • बागेश्वर: 140% अधिक बारिश
  • पौड़ी: 138% अतिरिक्त वर्षा
  • देहरादून: 110% अधिक बारिश
  • अल्मोड़ा: 103% अतिरिक्त वर्षा

कम वर्षा वाले जिले:

  • नैनीताल: सामान्य से 14% कम बारिश
  • पिथौरागढ़: 11% कम वर्षा

पूरे सीजन का विश्लेषण

मार्च से अब तक के पूरे सीजन के दौरान राज्य में 20% अधिक बारिश दर्ज की गई है। हालांकि यह आंकड़ा सामान्य के करीब है, लेकिन वर्षा के वितरण में चौंकाने वाली असमानता देखी गई है:

अधिक वर्षा वाले क्षेत्र:

  • बागेश्वर: 77% अधिक वर्षा
  • टिहरी: 75% अतिरिक्त बारिश
  • उधम सिंह नगर: 52% अधिक वर्षा
  • अल्मोड़ा: 48% अतिरिक्त बारिश

चिंता का विषय

राज्य भर में वर्षा के असमान वितरण ने चिंता पैदा की है। जहां कुछ जिलों में 77% तक अधिक बारिश हुई है, वहीं कुछ क्षेत्रों में सामान्य से काफी कम वर्षा दर्ज की गई है।

वैज्ञानिक कारण

डॉ. एस.पी. सती, भूविज्ञानी के अनुसार, “मौजूदा समय में जो बारिश हो रही है, उसके पीछे का कारण पश्चिमी विक्षोभ है। पिछले 20 सालों में पश्चिमी विक्षोभ ज्यादा प्रभावित हो गया है। इसका आकलन इससे भी पहले के 20 सालों से तुलना करने पर किया जा सकता है।”

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का परिणाम है। जिस महीने में सामान्यतः तीव्र गर्मी रिकॉर्ड की जाती है, उसमें इस प्रकार की वर्षा जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट संकेत हैं।

भविष्य की चुनौतियां

मौसम विज्ञानियों का कहना है कि यह असामान्य वर्षा पैटर्न भविष्य में और भी जटिल मौसमी स्थितियों का संकेत हो सकता है। इससे कृषि, जल संसाधन और पारिस्थितिकी तंत्र पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकते हैं।

उत्तराखंड में प्री-मानसूनी बारिश का यह असामान्य पैटर्न न केवल इस वर्ष की विशेषता है, बल्कि बदलते जलवायु परिस्थितियों का भी प्रतिबिंब है। मौसम विभाग और पर्यावरण विशेषज्ञ इस स्थिति पर निरंतर नजर रखे हुए हैं और आगामी मानसून सीजन के लिए तैयारियों में जुटे हैं।

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