उत्तराखंडचमोली

चमोली: भारत-तिब्बत व्यापार की ऐतिहासिक धरोहर गौचर मेला, 1943 से जारी परंपरा—अब ‘नमो मंत्र’ से बनेगी राष्ट्रीय पहचान

कर्णप्रयाग (चमोली): भारत-तिब्बत के बीच पारंपरिक व्यापार के इतिहास को संजोए हुए गौचर मेला अब राष्ट्रीय पहचान की ओर बढ़ रहा है। वर्ष 1943 में शुरू हुआ यह मेला आज अपर गढ़वाल के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित आयोजनों में शामिल है। हर साल 14 नवंबर से सात दिनों तक आयोजित होने वाला यह मेला सांस्कृतिक, औद्योगिक और व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र बन जाता है।

इस वर्ष भी 14 नवंबर से राजकीय औद्योगिक विकास एवं सांस्कृतिक मेला शुरू हो रहा है, जिसमें प्रतिदिन विविध कार्यक्रम और आयोजन होंगे। स्थानीय उत्पादों, हस्तशिल्प, पारंपरिक कला और आधुनिक प्रदर्शनियों के साथ यह मेला पूरे क्षेत्र के आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन में नई ऊर्जा भरता है।

हाल ही में 9 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘एक जिला–एक मेला’ की अवधारणा को आगे बढ़ाने की घोषणा के बाद गौचर मेले को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने का रास्ता और सशक्त हो गया है। सरकार की यह पहल क्षेत्रीय मेलों को राष्ट्रीय मंच देने और स्थानीय उत्पादों को बड़ी मार्केट से जोड़ने की दिशा में महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

गौचर मैदान में लगने वाला यह ऐतिहासिक मेला लंबे समय से भारत-तिब्बत व्यापार का साक्षी रहा है। बदलते समय के साथ इसका स्वरूप भले ही आधुनिक हुआ हो, मगर इसकी विरासत और सांस्कृतिक महत्ता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। व्यापारियों, उद्यमियों, कलाकारों और स्थानीय समुदाय के लिए यह मेला हर साल नए अवसर लेकर आता है।

7 दिवसीय इस आयोजन में सांस्कृतिक कार्यक्रम, उद्योग प्रदर्शनी, स्थानीय उत्पादों की बिक्री, कृषि एवं बागवानी स्टॉल, खेल प्रतियोगिताएं और आधुनिक मनोरंजन कार्यक्रम शामिल रहेंगे, जो इसे गढ़वाल क्षेत्र का सबसे आकर्षक और बहुआयामी मेला बनाते हैं।

 

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