उत्तराखंड

BREAKING NEWS : संस्कृति निदेशालय के बाहर लोक कलाकारों का धरना, गढ़ रत्न नरेंद्र सिंह नेगी का समर्थन

देहरादून: उत्तराखंड के लोक कलाकारों ने अपनी मांगों को लेकर संस्कृति निदेशालय, देहरादून के सामने धरना शुरू कर दिया है। लोक कलाकार महासंघ के बैनर तले हो रहे इस आंदोलन को अब उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक गढ़ रत्न नरेंद्र सिंह नेगी का भी समर्थन मिल गया है।’

लोक कलाकारों का आरोप है कि संस्कृति विभाग द्वारा उनके साथ लगातार अन्याय किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि न केवल उनके कार्यक्रमों के भुगतान में दो-दो साल की देरी की जा रही है, बल्कि उनके बिलों में भी अनियमित कटौती की जा रही है। कलाकारों का कहना है कि जब केंद्र सरकार लोक कलाकारों के मानदेय में वृद्धि करती है, तो राज्य सरकार को भी उसी के अनुरूप बढ़ोतरी करनी चाहिए, लेकिन उत्तराखंड में ऐसा नहीं हो रहा है।

संस्कृति विभाग पर गंभीर आरोप

लोक कलाकारों ने उत्तराखंड संस्कृति विभाग पर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि सरकार संस्कृति संरक्षण की बात तो करती है, लेकिन लोक कलाकारों के अधिकारों का हनन हो रहा है।

कलाकारों की प्रमुख शिकायतें

1-कार्यक्रमों का भुगतान समय पर नहीं किया जाता – दो-दो साल तक लंबित बिलों का भुगतान नहीं किया गया।

2-मानदेय में बढ़ोतरी के बावजूद पुरानी दरों पर भुगतान – केंद्र सरकार द्वारा बढ़ाए गए मानदेय को राज्य सरकार लागू नहीं कर रही।

3-लोक कलाकारों की मेहनत का सही मूल्य नहीं – भुगतान प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं है और अनुचित कटौती की जाती है।

4-कलाकारों के लिए कोई स्थायी आर्थिक सुरक्षा नहीं – कलाकारों को न ही किसी बीमा योजना का लाभ दिया जाता है, न ही पेंशन राशि में वृद्धि की जाती है।

5-कार्यक्रम आवंटन में भेदभाव – पसंदीदा कलाकारों को अधिक अवसर दिए जाते हैं, जबकि बाकी कलाकारों की उपेक्षा की जाती है।

6-नेगी और मैथानी के समर्थन से बढ़ा कलाकारों का हौसला

7-उत्तराखंड के लोक संगीत जगत के दो बड़े नाम गढ़ रत्न नरेंद्र सिंह नेगी और सौरभ मैथानी ने इस आंदोलन का समर्थन किया है।

सौरभ मैथानी ने उठाए सवाल

प्रसिद्ध लोक गायक सौरभ मैथानी ने कहा,
“जहाँ प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री संस्कृति को संजोने की बात करते हैं, वहीं संस्कृति विभाग कलाकारों को क्यों सताता है?”उन्होंने आगे कहा कि एक कलाकार गाँव से निकलकर संस्कृति विभाग तक अपनी जगह बनाने के लिए कड़ा संघर्ष करता है। लेकिन कुछ सालों बाद, जब उसे वास्तविकता का पता चलता है, तो संस्कृति छोड़कर दूसरे कार्यों में लग जाता है। उन्होंने सभी लोक कलाकारों और संस्कृति प्रेमियों से इस आंदोलन में जुड़ने की अपील की।

गढ़ रत्न नरेंद्र सिंह नेगी ने दिया सरकार को संदेश

उत्तराखंड के सबसे सम्मानित लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने भी लोक कलाकारों के आंदोलन को न्यायसंगत बताया और सरकार से तुरंत समाधान निकालने की अपील की।

उन्होंने कहा, “संस्कृति केवल सरकारी आयोजनों और नीतियों से नहीं बचती, इसे जीवंत बनाए रखने के लिए कलाकारों को भी सहयोग देना जरूरी है।”

लोक कलाकारों की प्रमुख मांगें

  1. सांस्कृतिक दलों का भुगतान एक महीने के भीतर किया जाए और भुगतान का पूरा विवरण दल नायक को दिया जाए।
  2. सभी लोक कलाकारों को GST से मुक्त किया जाए ताकि उनकी आय पर अतिरिक्त कर न लगे।
    पूर्व की भांति यात्रा भत्ता पुनः लागू किया जाए, जिससे कलाकारों को कार्यक्रमों में शामिल होने में आर्थिक दिक्कत न हो।
  3. कार्यक्रमों का आवंटन ‘रोस्टर सिस्टम’ के आधार पर हो, न कि व्यक्तिगत संबंधों या डिमांड के आधार पर।
  4. कुमाऊँ और गढ़वाल के सांस्कृतिक दलों के बिल क्षेत्रीय कार्यालयों में जमा हों और भुगतान वहीं से किया जाए।
  5. राज्य में केंद्र सरकार द्वारा घोषित मानदेय वृद्धि को तुरंत लागू किया जाए।
  6. उत्तराखंड के ख्यातिप्राप्त लोक गायकों को ‘संस्कृति विभाग’ में सूचीबद्ध किया जाए और उन्हें प्रदेश के प्रतिष्ठित मेलों में अवसर दिए जाएं।
  7. कलाकारों का ऑडिशन न लिया जाए, बल्कि उन्हें सीधे पंजीकृत किया जाए ताकि ठेकेदारी प्रथा खत्म हो।
  8. सांस्कृतिक दलों को वेशभूषा, आभूषण और रखरखाव के लिए वार्षिक अनुदान राशि दी जाए।
  9. कलाकारों को मिलने वाली पेंशन राशि में वृद्धि हो और पेंशन की उम्र 55 वर्ष तय की जाए।
  10. कलाकारों ने सरकार को दी चेतावनी
  11. लोक कलाकारों का कहना है कि अगर सरकार ने जल्द ही उनकी मांगें पूरी नहीं कीं, तो यह आंदोलन और तेज किया जाएगा।

लोक कलाकार महासंघ के अध्यक्ष ने कहा,

“हमने अपनी पूरी जिंदगी उत्तराखंड की संस्कृति को बचाने और संवारने में लगा दी। लेकिन अब हमारी मेहनत का ही मूल्य नहीं दिया जा रहा है। हम जब तक जिंदा हैं, अपनी पहचान और संस्कृति की लड़ाई लड़ते रहेंगे।”

अब सरकार की जिम्मेदारी

लोक कलाकारों का यह आंदोलन अब सिर्फ उनके अधिकारों की मांग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को बचाने का संघर्ष भी बन गया है।

अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या उत्तराखंड सरकार और संस्कृति विभाग कलाकारों की इन जायज़ मांगों को स्वीकार कर संस्कृति संरक्षण की दिशा में सही कदम उठाएंगे या यह आंदोलन और लंबा खिंच सकता है।

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