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आदि कहें या अन्त- शुभी भट्ट

आज की भावि पीढी को अपनी जडों अपने मुलभूत से अवगत कराने के उद्देश्य से निर्देशक ओम राउत द्वारा टी-सीरिज एंव रेट्रोफाइल्स के साथ मिलकर आदिपुरूष फिल्म का सपना पुरे रू0 6 करोड मे साकार किया। हम समझ सकते है उनका सफल उद्देश्य यही था कि हमारी आने वाली पीढी श्री राम व माता सीता केे चरित्र का अनुसरण करें, पर क्या जो हमारे निर्देशक महोदय दिखाना चाह रहे है, हमारे अराध्य ऐसे ही दिखते है। हमारे अराध्य तो फिर भी बाद मे आते है, उन्होने जिसके साथ युद्ध किया (रावण) क्या वो ऐसे दिखते है।
रावण अति बलशाली के साथ-साथ अति बुद्धिमान, महाशिव का परमभक्त, शिव तांडव स्त्रोेत के रचियता, रावण संहिता व अर्क प्रकाशम लिखने वाले, नव ग्रहोें को अपने अधीन रखने वाले, सोने की लंका मेें अपना राज्य स्थापित करने वाले रावण का चरित्र अपने आप में अति प्रभावशाली है। क्या लंका पति रावण निर्देशक ओम राउत के द्वारा तैयार किये गये रावण से कही से कही तक भी मेल खाता हैं। सिर्फ रावण ही नही बाकी अन्य किरदार भी अपनी अभद्र भाषा व अपनी भाव भंगिमाओं से नजरों में भी नही उतरते।
भारत के हर घर में पूजे जाने वाले महाबलशाली हनुमान जी के मुख से यह बात कि ‘‘तेल तेरे बाप का, आग तेरे बाप की और जलेगी भी तेरे बाप की‘‘ कहा तक आपको अपने आराध्य से जोडती हैं। आज भी इतिहास में जब कभी छोटे भाई के चरित्र का वर्णन किया जाता है तो लक्ष्मण का चरित्र स्मर्ण किया जाता है, क्या आदिपुरूष में दिखाये गये लक्ष्मण जैसे भाई को एक चरितार्थ श्रेणी में स्थान दिया जा सकता है, जिसकी भाषा सडकछाप प्रतीत हो रही हो।
निर्देशक ओम राउत द्वारा किन तथ्यों के आधार पर आदिपुरूष जैसे अति संवेदनशील प्रकरण पर रू0 6 करोड लगाने का जोखिम उठाया। आदि बनाना तो शायद उनकी समझ से परे था, किन्तु उन्होनें निर्देशक के रूप में अपने करियर का अंत जरूर कर दिया है। वैसे इसमें फिल्म में काम करने वाले कलाकारों, निर्माता निर्देशक की कोई कमी नही कहना चाहती।
इस पूरे काण्ड में जो सबसे अहम अभियुक्त है, वो तो सबकी नजरों से छुप कर चुपचाप तमाशा देख रहा हैै और गरम तवें में अपनी रोटी सेक रहा है, और वो कोई ओर नही केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड है, जिसकी प्रमाणकता के बिना किसी भी फिल्म को सिनेमाघरों तक पहुचने की अनुमति प्रमाणित नही होती हैं। केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा फिल्मों के प्रमाणन हेतु चार विभिन्न श्रेणियां तैयार की गई हैै, जिसमें आयु वर्ग, विषय, दृश्यांे में हिंसा, अश्लील भाषा यौन सम्बन्धित सामग्री, अश्लील कृत्य के आधार पर वर्गीकृत किया गया है तथा इनके आधार ही फिल्म को प्रमाणन की अनुमति प्रदान की जाती है।
आदिपुरूष जैसी फिल्मों को केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा खुले रूप से संस्तुति मिलना बोर्ड के द्वारा लिये गये फैसले पर बहुत बडा प्रश्नचिन्ह है। अगर हम सोशल मिडिया, फिल्मों व उनमें कार्य करने वाले कलाकारों की बात करें तो हमारा समाज, भावी पीढी व नव युवान उन्हे अनुसरण करता है, और बहुत कुछ सीखते हुये उन्हें अपने जीवन में उतारता है। इस हेतु यह फिल्म निर्माताओं तथा केन्द्रीय प्रमाणन बोर्ड की जिम्मेदारी बन जाती है कि सिर्फ उन्ही फिल्मों को सिनमेंघरों में चलाये जाने की अनुमति प्रदान की जाये, जिनसें हमारे समाज, बच्चों व नव युवान को नई दिशा, नई सोच व अपने ग्रन्थों, वेदों, पुराणों का सम्मान करना व अनुसरण करना सीख सकें।

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