
नई दिल्ली। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना को लेकर ऐतिहासिक फैसला लिया है। अब आगामी जनगणना में जाति आधारित गणना भी शामिल की जाएगी। केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में इस फैसले पर मुहर लगी, जिसकी जानकारी केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दी। उन्होंने कहा कि यह कदम सामाजिक न्याय और संसाधनों के समान वितरण की दिशा में अहम भूमिका निभाएगा।
क्या है जातिगत जनगणना और क्यों है यह ज़रूरी?
जातिगत जनगणना का उद्देश्य देश में विभिन्न जातियों, विशेषकर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की वास्तविक जनसंख्या का पता लगाना है। इससे सरकार को योजनाएं बनाने और उन्हें लागू करने में पारदर्शिता और प्रभावशीलता मिलेगी। विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस और अन्य दलों की लंबे समय से यह मांग रही है कि OBC वर्ग की सटीक संख्या पता लगाई जाए ताकि आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सही वर्ग तक पहुंचे।
जनगणना और इसके महत्व पर एक नज़र
भारत में जनगणना हर 10 साल में की जाती है। पहली बार 1872 में और स्वतंत्रता के बाद 1951 में पहली जनगणना हुई थी। 2011 में आखिरी जनगणना हुई, जिसमें भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ थी। उस समय लिंगानुपात 940 महिलाएं प्रति 1000 पुरुष और साक्षरता दर 74.04% थी।
जनगणना के आंकड़े न केवल जनसंख्या के आकार का पता देते हैं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शिक्षा, रोजगार, आवास, पेयजल, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी ढांचे की स्थिति को भी उजागर करते हैं। इससे सरकार को नीति निर्माण में सहूलियत मिलती है।
कोरोना के कारण टली थी 2021 की जनगणना
हर 10 साल में होने वाली जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन कोरोना महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया। अब तक नई तारीख का आधिकारिक ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, जनगणना के आंकड़े 2026 तक जारी किए जा सकते हैं। इससे जनगणना चक्र भी बदल सकता है — जैसे 2025-2035 और फिर 2035-2045 तक।
जाति जनगणना पर मोदी सरकार का रुख
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि सरकार ने यह फैसला इसलिए लिया है ताकि जातिगत आंकड़ों को वैज्ञानिक और पारदर्शी तरीके से इकट्ठा किया जा सके। उन्होंने कहा कि अब तक जातिगत जनगणना को राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया गया है, जिससे समाज में भ्रम और असंतुलन की स्थिति बनी। इस नई पहल से देश के सामाजिक ताने-बाने को मज़बूती मिलेगी और आर्थिक-सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिलेगा।
उन्होंने विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि पहले की सरकारों ने जातिगत जनगणना को लेकर केवल औपचारिकताएं पूरी कीं। 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लोकसभा में इसे कैबिनेट में लाने की बात कही थी, जिसके बाद एक मंत्री समूह का गठन हुआ, लेकिन इसके बाद भी केवल एक सीमित सर्वे ही कराया गया।
संविधान में जनगणना केंद्र का विषय
भारत के संविधान के अनुच्छेद 246 की केंद्रीय सूची की क्रम संख्या 69 के अनुसार, जनगणना पूरी तरह केंद्र सरकार का विषय है। कुछ राज्यों ने अपने स्तर पर जातिगत सर्वेक्षण किए हैं, लेकिन वे सर्वे राजनीतिक दृष्टिकोण से पारदर्शी नहीं माने गए। अब केंद्र सरकार के नेतृत्व में होने वाली जातिगत जनगणना से देशव्यापी समानता और सटीक आंकड़े मिल सकेंगे।
जाति जनगणना से क्या होंगे फायदे?
OBC की वास्तविक संख्या का पता चलेगा, जिससे आरक्षण और योजनाएं सटीक रूप से लागू होंगी।
नीतियों और संसाधनों के वितरण में पारदर्शिता आएगी।
सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिलेगा।
राजनीतिक और सामाजिक भ्रांतियों को दूर करने में मदद मिलेगी।
आर्थिक-सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों की सही पहचान हो सकेगी।
जातिगत जनगणना को लेकर मोदी सरकार का यह फैसला ऐतिहासिक माना जा रहा है। इससे न सिर्फ वर्षों से चली आ रही मांग पूरी होगी, बल्कि देश के सामाजिक-आर्थिक विकास को नई दिशा भी मिलेगी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में यह प्रक्रिया कैसे आगे बढ़ती है और इसके आंकड़े समाज में क्या प्रभाव डालते हैं।