उत्तराखंड

समाज के अंतिम व्यक्ति की सक्षम और सशक्त शिक्षा समाज की चिंता बने – धाद

धाद की ओर से टाउन हाल में लोकपर्व फूलदेई का समापन समारोह का हुआ आयोजन

 

देहरादूनः दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल ने कहा कि बच्चों को वर्चुअल दुनिया से बाहर निकालकर रचनात्मक लेखन और सृजन से जोड़ना जरूरी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी यही चाहते हैं कि बच्चों को जड़ से जोड़कर जगत से परिचित कराया जाए। प्रो. डंगवाल शुक्रवार को टाउन हाल में धाद संस्था की ओर से उत्तराखंड की लोक संस्कृति से जुड़े पर्व फूलदेई के समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रही थीं। इस मौके पर धाद की ओर से विभिन्न स्कूलों के बच्चों की ओर से बनाए गए चित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई गई। साथ ही चित्रकला प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत भी किया गया। लोकगायक प्रो. राकेश भट्ट ने फूलदेई से संबंधित लोकगीत गाकर इस लोकपर्व का महत्व बताया।
इस मौके पर प्रो. डंगवाल ने बच्चों के रचनात्मक विकास के लिए धाद के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रम ज्यादा से ज्यादा होना चाहिए, ताकि बच्चों को उनके लोक पर्व और संस्कृति की जानकारी भी मिल सके। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में बच्चे मोबाइल की दुनिया तक ही सीमित हैं और जो स्क्रीन पर उन्हें दिख रहा है, उस पर ही ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जबकि बच्चों के रचनात्मक विकास के लिए जरूरी है कि उन्हें कमरे से बाहर निकाला जाए और उनकी सृजनात्मक क्षमता को प्रकृति, जातक कथाओं और लोकपर्वों से जोड़कर उनके संपूर्ण विकास के लिए काम किया जाए। उनमें पढ़ने की आदत विकसित की जाए। इस दिशा में धाद की यह पहल सार्थक कही जा सकती है।
कोना कक्षा का कार्यक्रम के संयोजक गणेश चंद्र उनियाल ने इस कार्यक्रम की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की।
कार्यक्रम का विचार पक्ष रखते हुए तन्मय ममगाईं ने कहा कि कोना कक्षा का धाद की गतिविधि से आगे बढ़कर समाज की गतिविधि समाज की गतिविधि बने यही वास्तविक लक्ष्य है । पूरा अभियान समाज के सहयोग पर खड़ा किया गया और यह समाज की चिंता में शिक्षा को स्थापित करने के दीर्घकालिक लक्ष्य के साथ जारी रहेगा।
इससे पहले धाद के प्रमुख सहयोगी सुनील भट्ट ने कहा कि बच्चों तक उत्तम किताबें पहुंचाना उनका लक्ष्य है। दिल्ली में विभिन्न प्रकाशकों की ओर से आयोजित होने वाले पुस्तक मेले में वह शिरकत करते हैं और जो सबसे अच्छी किताबें होती हैं, उसे ‘कक्षा कोना का’ के माध्यम से सरकारी स्कूलों में भिजवाते हैं। उन्होंने बच्चों में साक्षारता और पढ़ने की आदत विकसित करने पर चर्चा करते हुए कहा कि पब्लिक स्कूल में वे बच्चे पढ़ते हैं, जिन्हे उनके मां-बाप पढ़ना चाहते हैं । सरकारी स्कूल में वे बच्चे पढ़ते हैं, जिन्हें सरकार पढ़ाना चाहती है । अगर ये सरकारी स्कूल न हों, तो इनमें पढ़ने वालों में से अधिकतर बच्चे अनपढ़ रह जाए। क्या इतनी बड़ी संख्या में अनपढ़ बच्चे रखकर हम एक बेहतर मुल्क बना पाएंगे? धाद इन बच्चों के पक्ष में है, जो सरकारी स्कूल में पढ़ रहे हैं।
अध्यक्षता कर रहे धाद के अध्यक्ष लोकेश नवानी ने कहा कि उनकी संस्था राज्य के समाजिक और सांस्कृतिक सरोकारों के लिए समर्पित है और वह चाहते हैं कि बच्चों में बालपन से ही रचनात्मक दिशा में कार्य करने की क्षमता विकसित की जाए। उन्होंने कहा कि समाज में एक शक्ति अंतरनिहित होती है जो अक्सर सुप्त होती है। समाज की इस शक्ति को जगाने जी ज़रुरत होती है। यदि हम इस शक्ति को जगाते हैं और उसका रचनात्मक उपयोग करते हैं तो यह सामाजिक शक्ति बड़ी ताकत या मूवमेंट का रूप ले लेती है। इससे बड़े काम किए जा सकते हैं।
इस दौरान बिमल रतूड़ी ने कोना कक्षा का कार्यक्रम को लेकर विभिन्न स्कूलों के शिक्षकों और सहयोगियों मंजू काला, विमल रतूड़ी, पूनम भटनागर, मनीषा ममगाईं, प्रीति तोमर,राजीव पांथरी, प्रेम बहुखंडी,जयदीप सकलानी, दीपक मैठाणी आदि ने विचार व्यक्त किये. कार्यक्रम का संचालन मीनाक्षी जुयाल ने किया। इस मौके राजीव पांथरी, प्रभाकर देवरानी, मीना जोशी, ज्योति जोशी, अवनीश उनियाल, सुषमा असवाल, बीना कंडारी, डा जयंत नवानी, उत्तम सिंह रावत, टी आर बरमोला, हरि सिंह चौधरी, हरेंद्र असवाल , मंजू काला, कल्पना बहुगुणा, पूनम नैथानी, कुलदीप कंडारी, आशीष कुकरेती, नरेंद्र सिंह नेगी, बृजमोहन उनियाल, विमल डबराल, डौली डबराल, सविता जोशी आदि उपस्थित रहे।

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